लिंगभेदी कानून लड़कियों की नौकरी में बाधा
दो दशक पहले दुनिया भर के 189 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इसके मुताबिक ये सभी देश महिलाओं के विकास और लैंगिक समानता पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि वल्र्ड बैंक की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक इस लक्ष्य तक पहुंचने में सबसे बड़ी रुकावट तमाम देशों में मौजूद कानून हैं। इनकी वजह से महिलाएं हर वह नौकरी नहीं कर पातीं जो पुरुष कर लेते हैं।
वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट ‘वुमेन, बिजनेस एंड लॉ 2016’ के मुताबिक महिलाओं को 150 देशों में कानूनी तौर पर नौकरियों में प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा है। यह रुकावटें सिर्फ उन महिलाओं को ही नहीं बल्कि उनके बच्चों, समुदाय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं। वल्र्ड बैंक के अनुसार 90 प्रतिशत देशों में कम से कम एक कानून ऐसा मौजूद है जो महिलाओं की आर्थिक अवसरों की राह में रोड़ा बने हुए हैं।
वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट ‘वुमेन, बिजनेस एंड लॉ 2016’ के मुताबिक महिलाओं को 150 देशों में कानूनी तौर पर नौकरियों में प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा है। यह रुकावटें सिर्फ उन महिलाओं को ही नहीं बल्कि उनके बच्चों, समुदाय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं। वल्र्ड बैंक के अनुसार 90 प्रतिशत देशों में कम से कम एक कानून ऐसा मौजूद है जो महिलाओं की आर्थिक अवसरों की राह में रोड़ा बने हुए हैं।
किस तरह की नौकरियां कर सकती हैं महिलाएं?
लगभग 100 देश ऐसे हैं जहां महिलाएं कुछ नौकरियां नहीं कर सकती हैं। इनमें भारत भी शामिल है। जैसे 41 देशों में महिलाएं चुनिंदा फैक्ट्रियों में काम नहीं कर सकतीं,
29 देशों में महिलाओं के रात में काम करने पर रोक है और 19
देश ऐसे हैं जहां महिलाएं अपनी पति की मर्जी के बिना काम न करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हैं। इतना ही नहीं सिर्फ आधे देशों में ही पितृत्व अवकाश की व्यवस्था है और एक तिहाई से भी कम में पेरेंटल लीव है। 30 देशों में शादीशुदा महिलाएं यह तय नहीं कर सकतीं कि उन्हें कहां रहना है। अकेले रूस में ऐसी
456 नौकरियां हैं जहां महिलाएं काम नहीं कर सकतीं। इनमें से एक ट्रेन ड्राइवर बनना, कार्पेंटर, ट्रैक्टर ड्राइवर, प्लंबर बनना शामिल हैं। वहीं कैमरून और यमन ऐसे कुछ देशों में हैं जहां महिलाओं को नौकरी के लिए अपने पति की मर्जी लेना जरूरी है।
भर्ती के दौरान होता है भेदभाव
world
बैंक के मुताबिक 100 से ज्यादा ऐसे देश हैं जहां नियुक्ति के दौरान होने वाले लिंगभेद को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। इतना ही नहीं एक महिला के गर्भवती होने पर नियोक्ता उसे नौकरी से निकाल भी सकता है। हालांकि अधिकांश देशों ने इसके लिए कानून बनाया है लेकिन अभी भी 26 ऐसे देश हैं जहां गर्भवती महिलाओं को नौकरी
से निकालना अपराध नहीं माना जाता है।
बीते कुछ सालों में बॉलीवुड में महिला प्रधान फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल किया है। कंगना रनोट की फिल्म तनु वेड्स मनु रिटन्र्स अकेली ऐसी महिला प्रधान फिल्म बन गई है जिसने 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई की। मगर पर्दे के पीछे की कहानी अभी भी चिंताजनक है। आंकड़ों को देखें तो बॉलीवुड में अभी भी 6.2 पुरुष कलाकारों पर सिर्फ 1 महिला कलाकार है। भारतीय फिल्म उद्योग दुनिया का ऐसा फिल्म उद्योग है जहां महिला अभिनेत्रियों की हिस्सेदारी सबसे कम है। देश में
महिला डायरेक्टर पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 9.1 फीसदी ही हैं। आइए जानते हैं दुनियाभर के फिल्म उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में...
बीते कुछ सालों में बॉलीवुड में महिला प्रधान फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल किया है। कंगना रनोट की फिल्म तनु वेड्स मनु रिटन्र्स अकेली ऐसी महिला प्रधान फिल्म बन गई है जिसने 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई की। मगर पर्दे के पीछे की कहानी अभी भी चिंताजनक है। आंकड़ों को देखें तो बॉलीवुड में अभी भी 6.2 पुरुष कलाकारों पर सिर्फ 1 महिला कलाकार है। भारतीय फिल्म उद्योग दुनिया का ऐसा फिल्म उद्योग है जहां महिला अभिनेत्रियों की हिस्सेदारी सबसे कम है। देश में
महिला डायरेक्टर पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 9.1 फीसदी ही हैं। आइए जानते हैं दुनियाभर के फिल्म उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में...
दुनियाभर में सिर्फ 20.5% महिला डायरेक्टर
दुनियाभर के फिल्म उद्योगों में सिर्फ 20.5 फीसदी डायरेक्टर ही महिलाएं हैं। ‘जीना डेविस इंस्टीट्यूट ऑन जेंडर इन मीडिया’ ने दुनिया के 12
बड़े फिल्म उद्योगों में सर्वे के आधार पर यह दावा किया है। भारत में सिर्फ 9.1 फीसदी महिलाएं ही फिल्मों में निर्देशक की भूमिका निभा रही हैं। सबसे ज्यादा महिला फिल्म डायरेक्टर ब्रिटेन में हैं। यहां महिला डायरेक्टरों का प्रतिशत 27.3 फीसदी है जबकि फ्रांस और अमेरिका में फिल्म डायरेक्टरों की संख्या न के बराबर है। चीन में 16.7 फीसदी डायरेक्टर महिलाएं हैं।
12 फीसदी महिला पटकथा लेखक
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में न सिर्फ निर्देशन बल्कि पटकथा लेखन में भी महिलाएं बेहद कम हैं। भारत में
12.1 फीसदी पटकथा लेखक महिलाएं हैं जबकि ब्रिटेन में सबसे ज्यादा
58.8 फीसदी पटकथा लेखक महिलाएं हैं । ऑस्ट्रेलिया में 33 और ब्राजील में 30 प्रतिशत पटकथा लेखक महिलाएं हैं। सबसे कम महिला पटकथा लेखक अमेरिकी फिल्म इंटस्ट्री में हैं। यहां सिर्फ 11.8 फीसदी स्क्रीनप्ले राइटर हैं।
भारत में महिलाओं को लीड रोल नहीं
जीना डेविस इंस्टीट्यूट के सर्वे के मुताबिक भारत की फिल्मों में लीड महिला किरदार बिल्कुल न के बराबर हैं। सर्वे में शामिल भारतीय फिल्मों के किरदारों में कोई ऐसा किरदार नजर नहीं आया जिसे फिल्म लीड भूमिका मिली हो। इतना ही नहीं फिल्म के कुल किरदारों में भी सिर्फ
24.9 प्रतिशत ही महिलाओं को मिले हैं। इस मामले में भारत दुनिया के दूसरे फिल्म उद्योगों में सबसे आगे है। सबसे ज्यादा ब्रिटेन के फिल्म उद्योग में महिलाओं को रोल मिला है। सर्वे में यह भी सामने आया कि भारतीय फिल्मों में खूबसूरत महिलाओं को सबसे ज्यादा अभिनय का मौका मिला है। यहां फिल्मों में
25.2 फीसदी रोल खूबसूरत महिलाओं के थे जबकि दूसरे फिल्म उद्योगों की फिल्मों में औसतन 13.1 फीसदी खूबसूरत महिलाओं के किरदार थे।
फिल्म निर्माण में 15 फीसदी महिलाएं
महिला फिल्म निर्माताओं के मामले में भी भारत पीछे हैं। भारत के फिल्म निर्माताओं में सिर्फ 15.2 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। जापान में सबसे कम महिलाएं फिल्म निर्देशक हैं। ब्राजील में महिला फिल्म प्रोड्यूसर सबसे ज्यादा हैं। यहां इनका प्रतिशत 47.2 है।
महिला वर्कफोर्स में भारत सिर्फ अरब देशों से ऊपर
संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत जी-20 देशों में नीचे से दूसरे पायदान पर है.। भारत इस रिपोर्ट में सिर्फ सऊ दी अरब से बेहतर है जहां महिलाओं पर गाड़ी चलाने तक पर प्रतिबंध है। विश्व आर्थिक मंच के हिसाब से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में भारत 136 देशों में 124वें नंबर पर है। भारत से नीचे के 12 देशों में राजनीतिक अस्थिरता वाले देश मिस्र, सीरिया और पाकिस्तान हैं।
महिला वर्कफोर्स में भारत सिर्फ अरब देशों से ऊपर
संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत जी-20 देशों में नीचे से दूसरे पायदान पर है.। भारत इस रिपोर्ट में सिर्फ सऊ दी अरब से बेहतर है जहां महिलाओं पर गाड़ी चलाने तक पर प्रतिबंध है। विश्व आर्थिक मंच के हिसाब से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में भारत 136 देशों में 124वें नंबर पर है। भारत से नीचे के 12 देशों में राजनीतिक अस्थिरता वाले देश मिस्र, सीरिया और पाकिस्तान हैं।
लोकसभा में 10 सांसदों में एक महिला
भारत की राजनीति में भी महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है।
2014 के लकसभा चुनावों के बाद सिर्फ 61
महिलाएं ही सांसद बन पाईं।
1952 में लोकसभा में सिर्फ 22 महिलाएं चुनी गईं थीं। भले ही
2014 तक इनकी संख्या बढ़ गई हो लेकिन यह अब भी वैश्विक औसत 20% से कम है। राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को कम तरजीह देना भी इस असमानता की बड़ी वजह है। 2009 के चुनावों में सिर्फ 349 महिलाओं को टिकट मिला था।
खेल में भी पक्षपात
खेल के क्षेत्र में भी महिलाओं के साथ पक्षपात साफ जगजाहिर है। आंकड़े बताते हैं कि 30
फ़ीसदी खेलों में इनाम की राशि पुरुष खिलाड़ियों के लिए महिला खिलाड़ियों के मुक़ाबले ज्यादा है। महिला फ़ुटबॉलरों को पुरुष खिलाड़ियों के मुकाबले काफ़ी कम पैसा मिलता है। इनमें से जिन 35 खेलों में इनाम में पैसा दिया जाता है, उनमें से 25 बराबर भुगतान करते हैं और 10
नहीं।
पुरुषों से ज्यादा कुशल
भारतीय उद्योग परिसंघ के अनुसार भारत में कुशल और प्रतिभासंपन्न महिलाओं की तादाद बढ़ी है। भारत के 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों के तीन लाख छात्रों का भी आकलन किया गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक, स्नातकों में 38 प्रतिशत महिलाएं और 34 प्रतिशत पुरुष सेवा योग्य है। इसके बावजूद महिलाएं आज भी भारत में कुल कार्य बल का एक तिहाई हिस्सा भी नहीं हैं। भारत के जॉब प्रिडिक्शन सर्वे के मुताबिक, उद्योग क्षेत्रों में लिंग अनुपात 68:32 है।
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