साल 2013 में ही फेसबुक फ्री बेसिक्स यानी इंटरनेट डॉट ओआरजी की योजना बना चुका था। भारत समेत 36 देशों में कंपनी की ओर से फ्री बेसिक्स की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। फेसबुक की ऑपरेशन हेड शेरिल सैंडबर्ग ने खुद यह माना था कि ऐसे भी फेसबुक यूजर हैं जिन्हें यह जानकारी नहीं होती कि वे इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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सर्वे से सामने आया सच
जियोपोल के एक सर्वे के मुताबिक इंडोनेशिया और नाइजीरिया में जब लोगों से पूछा गया कि क्या उन्होंने बीते 30 दिनों में इंटरनेट का इस्तेमाल किया है या फिर फेसबुक लॉग-इन किया है। तो जवाब में इंडोनेशिया के 69 प्रतिशत लोगों का कहना था कि उन्होंने इंटरनेट का इस्तेमाल किया है। वहीं, 65 प्रतिशत का मानना था कि उन्होंने इंटरनेट का नहीं, फेसबुक का इस्तेमाल किया। इसी तरह, नाइजीरिया में 78 फीसदी लोगों ने माना कि उन्होंने फेसबुक का तो इस्तेमाल किया है, लेकिन इंटरनेट का नहीं। इनमें से अधिकांश युवा हैं, जिनकी इंडोनेशिया में औसत आयु 25 साल और नाइजीरिया में 22 साल है।
तेज होते विरोध के सुर
विरोधियों का तर्क है कि फ्री बेसिक्स सेवा के तहत पैसों की भरपाई टेलिकॉम ऑपरेटरों को करनी होगी। ये ऑपरेटर मुफ्त में उपलब्ध कराई गई वेबसाइटों की कीमत अन्य साइटों के दाम बढ़ाकर वसूल सकते हैं। यानी उपभोक्ताओं को कुछ साइटें तो मुफ्त में मिलने लगेंगी, लेकिन कुछ के इस्तेमाल के लिए उन्हें ज्यादा पैसे चुकाने पड़ेंगे। विरोधियों का आरोप है कि फ्री बेसिक्स सेवा का मकसद केवल फेसबुक और उसकी सहयोगी साइटों को फायदा पहुंचाना है।फेसबुक का तर्क
भारत की लगभग 25 फीसदी आबादी को ही इंटरनेट तक पहुंच उपलब्ध है। फेसबुक की फ्री बेसिक्स सेवा ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को इंटरनेट से जोड़ेगी। कंपनी के मुताबिक मुफ्त में मिलने वाली इस सेवा से ऐसे लोग भी जुड़ेंगे जिनके पास इंटरनेट के लिए पैसे नहीं हैं। फ्री बेसिक्स के सपने को साकार करने के लिए अभी तक 800 से अधिक डेवलपर फेसबुक का दामन थाम चुके हैं। विश्व का कोई भी डेवलपर इस प्रोगाम में शामिल हो सकता है।
नेट न्यूट्रेलिटी पर नजर
‘नेट न्यूट्रेलिटी’ का मतलब है कि सभी ऑनलाइन सेवाओं के लिए एक ही तरह का इंटरनेट पैक हो। यानी यूजर जिस भी साइट या एप का इस्तेमाल करें, वह हर इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी से एक ही कीमत व स्पीड पर मिले। हालांकि टेलीकॉम कंपनियां चाहती हैं कि यूजर व्हाट्सएप, फेसबुक, जीमेल और तमाम ऑनलाइन साइटों के इस्तेमाल के लिए अलग-अलग नेट प्लान लें। इसे यूं समझा जा सकता है कि आपने दो अलग-अलग मॉडल की गाड़ी खरीदी है लेकिन पेट्रोल देने वाली कंपनी दोनों गाड़ियों के लिए अलग-अलग दर से पेट्रोल के दाम वसूल रही है।
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