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फेसबुक से इंटरनेट को बचाने का आज अंतिम दिन है। फेसबुक अपनी फ्री बेसिक्स सेवा के पक्ष में जमकर पैसा बहा रहा है। दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने 31 दिसंबर तक लोगों से इस पर अपनी राय देने के लिए कहा है। यानी फेसबुक से इंटरनेट की आजादी बचाने के लिए लोग आज ट्राई को मेल कर सकते हैं। वहीं फेसबुक ने भी नोटिफिकेशन से लेकर बड़े-बड़े विज्ञापनों के जरिए फ्री इंटरनेट देने की बात कहकर अपनी फ्री बेसिक्स सेवा के लिए समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश की है।


इसलिए खतरनाक है फ्री बेसिक्स

फेसबुक का कहना है कि वह फ्री इंटरनेट के जरिए अधिक लोगों को इंटरनेट से जोड़ना चाहती है। फ्री दिए जाने वाले डाटा का भुगतान टेलिकॉम कंपनियां करेंगी। फ्री बेसिक्स सेवा के तहत पैसों की भरपाई टेलिकॉम ऑपरेटरों को करनी होगी तो क्या ये ऑपरेटर मुफ्त में उपलब्ध कराई गई वेबसाइटों की कीमत अन्य साइटों के दाम बढ़ाकर वसूलकर नहीं करेंगे? यानी उपभोक्ताओं को कुछ साइटें तो मुफ्त में मिलने लगेंगी, लेकिन कुछ के इस्तेमाल के लिए उन्हें ज्यादा पैसे चुकाने पड़ेंगे। विरोधियों का आरोप है कि फ्री बेसिक्स सेवा का मकसद केवल फेसबुक और उसकी सहयोगी साइटों को फायदा पहुंचाना है।

एक क्लिक में भेजे ट्राई को ईमेल

फ्री बेसिक्स के चंगुल से इंटरनेट को बचाने के लिए सिर्फ एक क्लिक में ट्राई को ईमेल भेज सकते हैं। इसके लिए सिर्फ http://www.savetheinternet.in/ पर जाना होगा। यहां ट्राई को फ्री बेसिक्स के विरोध में मेल भेजने के लिए एक बटन दिया गया है। इस बटन पर क्लिक करते ही ट्राई को मेल पहुंच जाएगा।


1.फ्री बेसिक्स पर इंटरनेट चुनिंदा वेबसाइटों के लिए ही मुफ्त है। अन्य साइटों को दायरे से क्यों बाहर रखा गया है?

2.टेलिकॉम कंपनियां इसकी भरपाई कैसे करेंगी? क्या गारंटी है कि वे दूसरी इंटरनेट सेवाओं के दाम नहीं बढ़ाएंगी?

3.बिना फ्री बेसिक्स के भी हर साल 10 करोड़ नए लोग इंटरनेट से जुड़ रहे हैं। ऐसे में इस सेवा की क्या जरूरत है?

4.कई बड़ी साइटें फ्री बेसिक्स से नहीं जुड़ी हैं। ये साइटें अपने ग्राहकों के डाटा खपत की जानकारी क्यों दें। इनका ट्रैफिक फेसबुक के सर्वर से आएगा। 

5.इंडोनेशिया जैसे देशों में 60 फीसदी से अधिक लोग इंटरनेट को फेसबुक समझते हैं। क्या इन देशों में फेसबुक का एकाधिकार स्थापित नहीं हुआ है?

 नेट न्यूट्रेलिटी क्या है?

-‘नेट न्यूट्रेलिटी’ का मतलब है कि सभी ऑनलाइन सेवाओं के लिए एक ही तरह का इंटरनेट पैक हो। यानी यूजर जिस भी साइट या एप का इस्तेमाल करें, वह हर इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी से एक ही कीमत व स्पीड पर मिले। हालांकि टेलीकॉम कंपनियां चाहती हैं कि यूजर व्हाट्सएप, फेसबुक, जीमेल और तमाम ऑनलाइन साइटों के इस्तेमाल के लिए अलग-अलग नेट प्लान लें। इसे यूं समझा जा सकता है कि आपने दो अलग-अलग मॉडल की गाड़ी खरीदी है लेकिन पेट्रोल देने वाली कंपनी दोनों गाड़ियों के लिए अलग-अलग दर से पेट्रोल के दाम वसूल रही है।


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