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भारत माता....ये दो शब्द इन दिनों बेहद चर्चा में हैं। जो भारत माता की जय बोलेगा वो सच्चा देश भक्त और जो नहीं बोलेगा वो देशद्रोही।  सोशल मीडिया पर आजकल इसी तरह की भड़काऊ बहस चल रही है। लेकिन आखिर ये भारत माता क्या है ? इसकी जो तस्वीर आजकल दिखाई जा रही है क्या हमारी भारत माता यही है। दरअसल हम खुद ही अपने देश को लेकर काफी असमंजस की स्थिति में हैं। कभी उसे भारत वर्ष कहेंगे तो कभी भारत माता। लेकिन अगर इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि कितनी खोखली है हमारी देशभक्ति। एक समूह विशेष के व्यक्ति  के भारत माता की जय न बोलने पर हम एक मिनट नहीं लगाते उसे देशद्रोही बताने में। भारत माता के रूप में पेश की जा रही ये तस्वीर हमेशा से एेसी नहीं थी। इसकी कोई तस्वीर ही नहीं थी। तब अलग-अलग धर्म के लोग इस बात पर बहस नहीं करते थे कि भारत माता की जय बोलें या नहीं। वह खुलकर हर हाल में अपने देश की रक्षा करने के लिए खड़े रहते थे। अगर वही तस्वीर आज भी होती तो ये बेकार की बहस कभी शुरू ही नहीं होती।


वाराणसी के काशी विद्यापीठ के प्रांगण में बना भारत का मंदिर। आज की पीढ़ी के लिए देशभक्ति को समझने की एक मिसाइल के तौर पर देखा जा सकता है।  जी हां मंदिर। एक मंदिर जहां पर भारत की कोई मूरत या कोई सूरत नहीं है। अगर है तो विशाल मैप। भारत का एक बड़ा संगमरमर से बना मैप। इसको डॉ. शिवप्रसाद गुप्त ने बनवाया था और उद्घाटन 1936 में महात्मा गांधी ने करवाया। यह मंदिर बीएचयू के काफी पास है। अगर कभी जाएं तो जरूर देखें अपने भारत की ये तस्वीर जो शायद आज लोग भूल ही गए हैं। अगर याद है तो भारत माता...जो कभी थी ही नहीं।
अपनी फिल्मों को अगर उठाकर देखें तो वहां भी कभी भारत माता नहीं थी। मुगल ए आजम एक एेसी फिल्म जिसपर हर भारतीयों को नाज है। हम सीना ठोक कर कहते हैं कि हमारे बॉलीवुड में एेसी फिल्में भी बनीं है। उस जैसी महान फिल्मों में भी हमारी आज की भारत माता नहीं थी। आपको शायद याद होगा फिल्म का पहला सीन। जिसमें भारत का एक बड़ा सा मैप दिखाया है। मैप के साथ ही एक आवाज सुनाई देती है- मैं हिन्दुस्तान हूं।
हिन्दुस्तान हूं। भारत माता नहीं। आपको याद हो तो उस मैप में कोई औरत दिखाई नहीं गई। जो हाथ में झंडा लेकर भारत माता बनी बैठी हो। आपको याद न हो तो नीचे दिए हुए वीडियो में एक बार चेक भी कर सकते हैं। तो बार बार मैं वही सवाल करती रहूंगी कि आखिर ये भारत माता आई कहां से। आखिर कहां से आज भारत माता का मुद्दा इतना अहम हो गया।  भारत की माता की जय बोलना या नहीं भ्रष्टाचार, गरीबी, बैड लोन जैसे अहम मुद्दों से ज्यादा अहम हो गया है।


सबसे पहले भारत माता शब्द का इस्तेमाल एक बंगाली नाटक में किया गया था। जिसमें एक मध्यम वर्गीय महिला को दिखाया गया था। उस महिला को देश की महिलाओं से जोड़ने के लिए भारत माता का नाम दिया गया था। उसके बहुत सालों बाद कुछ एेसा हुआ जिसको समझना बेहद जरूरी है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद भारत में आजादी की मांग तेजी से बढ़ने लगी। नारे लगने तेज हो गए। उसी दौरान एक नारा दिया गया भारत माता की जय। लेकिन तब भी लोगों ने भारत माता की मूर्ति नहीं बल्कि भारतीय झंडे के साथ आंदोलन किया था।
तो क्या भारत माता विदेशी बाजार की देन है? हां शायद। 1940 के बाद भारत में माचिस का व्यापार जापान और स्वीडन जैसी कंपनियां किया करती थी। उस समय इन दोनों देशों की माचिस कई देशों में भेजी जाती थी और अपनी माचिस के डिब्बे पर दूसरे देश के लोगों को जोड़ने की कोशिश ये कंपनियां काफी बेहतर तरीके से करती थीं। इसी तरह की एक कोशिश में माचिस के एक डिब्बे पर पहली बार नजर आई थी एक महिला।इसके बाद भारतीय कंपनियों ने भी इसी तरह भारत माता का इस्तेमाल माचिस बेचने के लिए किया था।
सवाल अहम है। क्या उसी पुरानी माचिस के डिब्बे ने आज हमारे देश में आग लगा दी है। या हम इतने कमजोर हो गए हैं कि सालों पुरानी एक माचिस ने भी हमारे देश को एक बार फिर टुकड़ों में बांट दिया है। ये सवाल किसी और से नहीं लेकिन अपने आप से जरुर पूछें। किसी को देशद्रोही या अपने को देशभक्त बताने से पहले ये सवाल खुद से जरूर करें। आपको जवाब मिल जाएगा कि भारत माता कहां से आई।

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