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कोई इन नादानों को बताए कि लात-घूसें अगर विचारों की बराबरी कर पाते तो आपके साहेब को काले धन, गरीबी हटाने जैसे जुमलों की जरूरत न होती। माना कि इंसाफ के दरवाजे पर हमला करने वाले काले कोट वालों को पढ़ने के लिए जेएनयू जैसे संस्थान नहीं मिले।

संघी बहादुरों ये जान लो कि लात-घूसों से न तो गांधी को मारा जा सका है और न ही भगत सिंह को खत्म किया जा सका है। मरा तो उनका जिस्म है, उनके विचार आज भी मेरे जैसे करोडों नौजवानों के जहन में बसे हैं। ये भी मान लिया कि आप ही राष्ट्रवादी हो लेकिन अपने राष्ट्रवाद को तो समझा दीजिए। देश का झंडा फहराना और चिल्ला-चिल्लाकर भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाना ही देशभक्ति है तब भी मुझे आपकी देशभक्ति से ऐतराज नहीं है। जरा बताइए क्या आपके देश की परिभाषा में लोग भी शामिल है जो बोलते हैं, हंसते हैं, रोते हैं और जिन्हें भूख भी लगती है। अगर आपके देश की परिभाषा में सांस लेने वाले लोग भी शामिल है तो बताइए कि एक पुलिस वाले को जबरदस्ती भगवा झंडा पकड़ाना या आजादी मांग रही महिलाओं को वेश्या की संज्ञा से नवाजना उस देश की भक्ति है या फिर गरीबों, मजदूरों, महिलाओं को उनका हक दिलाना  देशभक्ति है? आपकी नजर में जनता की आवाज उठाने वाला, मजदूर के अधिकारों के लिए लड़ने वाला देशद्रोही है तो बताइए सांप्रदायिक माहौल में मिठास घोलने वाले आपके योगी, गुरुराज, जुमलावीर जैसे नेता जो अपने ही देश के लोगों को पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं, लोगों को उनके खानपान की आदतों की वजह से जान से मारने की धमकी देते हैं, जो गांधी के हत्यारे का जन्मदिन मनाते हैं, उन्हें आप देशभक्त कहेंगे या देशद्रोही.

जब आपके टट पूंजिया चैनल वाले कहते हैं कि जेएनयू में पढ़ाई के लिए सब्सिडी दी जा रही है न कि राजनीति के लिए तो साफ हो जाता है कि हैदराबाद से लेकर एफटीआईआई और जेएनयू तक छात्रों के आंदलनों ने आपके अंदर डर पैदा कर दिया है। आप कहते हो कि छात्र राजनीति कर रहे हैं, हम ताल ठोक के कहते हैं कि हां, हम राजनीति कर रहे हैं, हम उस सकीर्ण सोच से ऊपर बदलाव की राजनीति कर रहे हैं जो देश में दंगा, फसाद, गरीबी, भुखमरी को मिटाएगी। यह लोगों को बेहतर जिदंगी देने की राजनीति है।





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