एक दौर वह था जब ओसामा के समर्थक बताए जाने के बावजूद भी दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों से देशद्रोह का आरोप 15 मिनट में खत्म कर दिया गया था। लेकिन ये आज का दौर है। बिना ठोस सुबूतों के छात्रों को कई दिनों से जेल में बंद किया हुआ है। ’ 14 साल पहले सुनील कुमार (35) और उनके पांच दोस्तों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया गया था। उस वक्त ये सभी दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे। सुनील कुमार के अलावा शाहबाज आलम, नवीन चंद्रा, जीवन मेहता और गुरमीत सिंह को दिल्ली पुलिस ने 8 अक्टूबर 2001 को भजनपुरा से गिरफ्तार किया था। ये लोग उस वक्त अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले का विरोध कर रहे थे। इन पर देशद्रोह का चार्ज इसलिए भी लगाया गया था कि क्योंकि ये लोग अमेरिका को भारत के समर्थन का भी विरोध कर रहे थे। सभी आरोपी डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन और ऑल इंडिया पीपुल्स रेजिस्टेंस फोरम से जुड़े थे।
देशद्रोह के आरोपों का सामना कर चुके ये लोग मानते हैं कि जेएनयू विवाद में फंसे उमर खालिद और कन्हैया कुमार की स्थिति ज्यादा गंभीर इसलिए है, क्योंकि सरकार इनके खिलाफ एक्शन को बिल्कुल सही ठहरा रही है, जबकि 2001 में जब एनडीए की सरकार थी, तब तत्कालीन गृह मंत्री एलके आडवाणी के कहने पर महज दो हफ्ते में छात्रों पर से देशद्रोह का आरोप वापस ले लिया था।
आडवाणी ने डीयू के तत्कालीन वाइस चांसलर दीपक नैयर के साथ सिर्फ 15 मिनट बातचीत की थी, जिसके बाद आरोप वापस ले लिए गए थे। इन छात्रों को करीब 10 दिन तिहाड़ जेल में बिताने पड़े थे। 32 साल के शाहजाद आलम ने कहा, ‘हम लोग सौभाग्यशाली इसलिए भी थे, क्योंकि उस वक्त मीडिया कोई प्रोपेगेंडा नहीं चला रहा था। जैसा कि कन्हैया और उमर खालिद के साथ हो रहा है।’ आलम ने बताया कि वह उस वक्त 18 साल के थे।
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