पेशे से पत्रकार हूं। पत्रकार यानि आजकल का सबसे बदनाम पेशा, अब तक लोग घर बैठकर मन ही मन कोसते थे लेकिन हाल के दिनों में परिस्थितियां बदली है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बढ़ी और राष्ट्रभक्ति जगी तो लोग सड़कों पर भी निकलने लगे हैं। हम पत्रकारों के नाम मात्र के अस्तित्व को जाने बगैर अलग अलग संगठन के लोग जोर आजमाइश भी करने लगे हैं, माइक-कैमरा के साथ बदसलूकी तो दूर अब सीधे पत्रकारों को ही निशाना बनाया जा रहा है। खैर इन सब बातों में उलझने के बजाए हम सीधे मुद्दे पर आते हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में गुप्त मतदान की व्यवस्था है, लेकिन आज में सार्वजनिक रूप से कह रहा हूं कि मैने लोकसभा चुनाव में बदलाव के वोट किया था, आपकी अगुवाई वाली बीजेपी को वोट किया था। बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार, यही नारा दिया था न आपने।
हरियाणा में जाट उपद्रवियों की हिंसा पर खट्टर सरकार के साथ
मोदी जी, सच कहूं तो हिल गया हूं, जब से मुरथल की खबरें सुन रहा हूं। माना जाता है कि जब रोम जल रहा था तो वहां का सम्राट नीरो बंसी बजा रहा था, वही कुछ हरियाणा के मुरथल में हुआ। हरियाणा जाने से डरने लगा हूं, इसलिए नहीं कि आरक्षण की मांग कर रहे उन वहशी दंगाइयों ने हमारी मां-बहनों के साथ क्या किया, बल्कि इसलिए कि खाकी वर्दी पहन पुलिस ने जो कायरता दिखाई। इसलिए भी, कि कैसे खट्टर सरकार ने 30 फीसदी जाट वोटों के लिए न सिर्फ आंखें मूंद ली बल्कि मामला सामने आने के बाद भी बुझे मन से जांच कमिटी की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया।
प्रधानमंत्री जी, शायद आप जानते ही होंगे और अगर नहीं जानते हों तो मैं बता दूं कि अरब देशों में 'तहर्रुस' नामक एक खेल खेला जाता है जिसमें सार्वजनिक रूप से महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया जाता है। इसमें बलात्कार, पिटाई से लेकर लूट तक को अंजाम दिया जाता है, खास बात यह है कि इस उत्पीड़न को भीड़ के साथ बड़े इवेंट्स, रैली, प्रदर्शन, कॉन्सर्ट या पब्लिक इवेंट्स के दौरान ही किया जाता है। कई बार, पीड़ित अचानक हुए इस हमले से 'स्टेट ऑफ शॉक' की हालत में पहुंच जाती है और ऐसे में भीड़ फायदा उठाकर उसे लूट भी लेती है। बड़ी संख्या में भीड़ की मौजूदगी से हमलावर सजा से भी बच जाते है।
मोदी जी, यह सब बताने का तात्पर्य यह है कि जो कुछ हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान हुआ वो कहीं से भी इससे कम नहीं था। मोदी जी आपकी खामोशी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खामोशी से अलग है, उनकी खामोशी न जाने कितनों सवालों की आबरू बचा लेती थी, लेकिन आपकी इस खामोशी की उपज अवारा भीड़ ने देश की महिलाओं की आबरू लूटने में भी गुरेज नहीं की। महंगाई, भ्रष्टाचार, पेट्रोल की कीमत, अखलाक की मौत, रोहित वेमुला की मौत और अब चल रहे जेएनयू कांड के बाद पूरा देश दो विचारधाराओं में बंट चुका है। राष्ट्रद्रोही बनाम राष्ट्रभक्त की लड़ाई जारी है लेकिन इन सब मुद्दों में आखिर दो पक्ष तो हैं, लेकिन मुरथल घटना पर तो कोई पक्ष ही नहीं है। आखिर हो भी क्यों, वोटबैंक से समझौता कौन करे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब में वोटबैंक तलाश रहे हैं तो राहुल हर बार की तरह इस बार भी गायब हैं।
बॉलीवुड की एक फिल्म एनएच 10 देखकर एक वक्त सहम गया था लेकिन जाटों का यह प्रदर्शन देखकर यकीन हो गया। आरक्षण की मांग का तरीका अगर इतना भयावह है तो फिर समझ सकते हैं कि आरक्षण का फायदा उठाने के बाद इनका रवैया क्या होगा। एक वक्त था जब पूरा देश आपकी राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया का कायल हुआ करता था लेकिन पिछले दिनों में कुछ ऐसे मुद्दों पर जो सीधे जनता से जुड़े थे, आपकी संवादहीनता ने न सिर्फ लोगों को निराश किया है बल्कि आपको भी संवेदनहीनता की श्रेणी में ला खड़ा किया है। पूरे प्रदर्शन से न सिर्फ करोंड़ों-अरबों का नुकसान हुआ है बल्कि सैकड़ों परिवारों को इसका दंश झेलना पड़ा है और आप फिर भी चुप हैं।
आप सिर्फ बीजेपी के नेता नहीं हैं। देश के प्रधानमंत्री हैं। आप अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को लगातार बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इस तरह की गुंडई देश की छवि को कहां ले जाएगी ये आपसे बेहतर कौन समझ सकता है। आपको शपथ लिए 2 साल होने वाले हैं लेकिन सोशल मीडिया में आपके प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ है। आपका एक ट्वीट लाखों लोगों में एक संदेश पहुंचा सकता है। मोदी जी, निर्दोष महलाओं के कपड़े फाड़कर खेतों में घसीटकर गैंगरेप जैसे कुकृत्य को अंजाम देकर उन दंगाई जाटों ने जिस बहादुरी का परिचय दिया है वह इस पूरी बिरादरी के साथ-साथ पुलिस महकमे के लिए भी एक कलंक से कम नहीं है।
रूह कंपा देने वाली इस घटना में कहर झेलने वाली महिलाओं को जिस तरह पुलिस ने मेडिकल टेस्ट, कानून और अदालत का वास्ता देकर फजीहत से बचने के लिए कहा, इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है, फिर भी आपने एक शब्द बोलना उचित नहीं समझा। क्या ये राष्ट्रद्रोह नहीं है, क्या उन दंगाइयों के ऊपर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा नहीं होना चाहिए, मोदी जी आप पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की बात कर सकते थे ताकि इन दंगाइयों को एक सख्त संदेश दिया जा सके। मोदी जी, आप अपने चुनाव प्रचार में महिला सुरक्षा की बात करते थे लेकिन क्या अब इसकी कोई कीमत नहीं? इस भयावह मुद्दे पर भी आपकी तरफ से कोई शब्द नहीं निकले, ना ही कोई ट्वीट, क्या यही आप भी उन्ही नेताओं की ब्रिगेड में शामिल हो चुके हैं? जब न्यायपालिका इंसाफ की कसौटी पर सच और झूठ को तोल कर सच्चाई का निर्धारण करती है, तो मुझ जैसे अनेक आम भारतीयों को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ती है।
जिस तरह कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई है उसे देखकर अंग्रेजी राज याद करने को मजबूर हो जाता हूं। उस वक्त भी खाकी वर्दी वाली पुलिस अपने ही देशवासियों को रौंदने का काम करती थी और आज भी यह वर्दी खामोश होकर जाटों का उत्पात देखती रही। अब जब पुलिसवालों के घर से लूटे हुए सामान मिलने की खबर आ रही है तो बाकी कुछ कहने की जरूरत ही नहीं बची। जेएनयू मुद्दे पर देशभक्ति का राग अलाप रहे राष्ट्रभक्तों से मुझे यह उम्मीद पहले भी नहीं थी लेकिन आप इतने खामोश हो जाएंगे, यह भी नहीं सोचा था। सरकार के साथ साथ बड़े बड़े पत्रकार और मीडिया हाउस ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है, तभी मुझ जैसा छोटा पत्रकार यह लिखने को मजबूर हुआ है।
आखिर चुप्पी हो भी क्यों न, एक तो मामला सांप्रदायिक नहीं है और ऊपर से यूपी विधानसभा चुनाव, किसे नहीं चाहिए जाटों का वोट। मेरा निजी तौर पर मानना है कि माननीय न्यायालय द्वारा इस विषय पर स्वत: संज्ञान लेकर कार्यवाही करने के बजाए अगर हरियाणा सरकार इस पर कार्रवाई करती इस देश के लिए शायद ज्यादा अच्छा होता क्योंकि तब जनता में इक साकारात्मक संदेश तो जाता ही साथ ही राजनीतिक रोटियाँ भी नहीं सिक पातीं। इससे प्रदर्शनकारियों को भी सख्त संदेश मिलता। और न ही खबरों का धंधा हो पाता। माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय मुझे उम्मीद है कि इस आम भारतीय की आवाज इस देश में न्याय की सबसे बड़ी अदालत के सबसे बड़े न्यायाधीश तक अवश्य पहुंचेगी।
मोदी जी, क्या हमारा लोकतंत्र वाकई इतना कमजोर है, क्या हम वाकई उन चंद ताकतवर दंगाईयों के रहमो करम पर जिंदा है, क्या आपसे जो उम्मीदें थी, उसे दफना दूं, मान लूं कि आप भी उन्ही राजनेताओं में से हैं जो बस वोटबैंक की राजनीति करते हैं। मोदी जी, जनता सब देख रही है। यहां सत्ता का फैसला सबसे निचले स्तर के लोग ही करते हैं, यहां प्याज की कीमत पर सरकार बनती-बिगड़ती है और यहां की जनता जितनी जल्दी नोताओं को अपना हीरो बनाती है उसी रफ्तार से बाहर भी करती है।
एक आम भारतीय पत्रकार सुधीर झा
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