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मेरा नाम उमर खालिद ज़रूर है, लेकिन मैं आतंकी नहीं हूं। इस समय और पिछले कुछ दिनों से छात्र सड़कों पर हैं, मैं उनका शुक्रगुज़ार हूं। ये लड़ाई कुछ हम 5-6 लोगों के लिए नहीं थी, आज ये लड़ाई इस विश्वविद्यालय की नहीं बल्कि देश के हर विश्वविद्यालय की लड़ाई है कि आने वाले दिनों में हमारा कैसा समाज होगा।
पिछले 10 दिनों में मुझे अपने बारे में ऐसी ऐसी बातें पता चलीं जो मुझे खुद नहीं पता थी। मुझे पता चला कि मैं 2 बार पाकिस्तान होकर आया हूं, मेरे पास पासपोर्ट नहीं है और मैं पाकिस्तान हो कर आया हूं। फिर मुझे पता चला कि में मास्टरमाइंड था।
जेएनयू स्टूडेंट के पास अच्छा दिमाग होता है, लेकिन उनमें से मैं मास्टरमाइंड था और मैं कई विश्वविद्यालय में लंबे समय से ऐसी योजना बना रहा था। पिछले कुछ दिनों में मैंने 800 कॉल किए हैं, कहां किए हैं, कोई सबूत कुछ नहीं। अरब में किया है, पहली बात ये कि कोई सबूत तो लाओ। जैश से मेरा नाम जोड़ा गया, जब पहली बार सुना तो हंसी आई, और लगा कि जैश ए मोहम्मद को पता चलेगा तो झंडेवालान पर जाकर प्रोटेस्ट करने लगेगा।
कुछ तो शर्म हो, ये वाकई में मीडिया ट्रायल है, उन्होंने हमें फंसाने की कोशिश की है। आईबी और एजेंसी ने कह दिया कि जैश ए मोहम्मद का कोई लिंक नहीं है, लेकिन माफी मांगना भी सही नहीं समझा। जिस किस्म से झूठ बोले, अगर मीडिया ने जो बातें कहीं, अगर उनको लगा कि वो बच जाएंगे तो ये नहीं चलेगा। जेएनयू के छात्र आपको इसका मज़ा चखाएंगे, एक एक चैनल को इसका जवाब देना होगा। चिंता मुझे तब हुई जब मैंने अपनी बहन और पिता के बयान देखे, किसी को बोला बलात्कार कर देंगे किसी को बोला जान से मार देंगे।

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