अमेरिका में आठ नवंबर को होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव से पहले सरगर्मी बढ़ गई है। अगले महीने एक फरवरी से प्राइमरी चुनाव की शुरुआत होने जा रही है, जो जुलाई तक चलेंगे। बाकी देशों के मुकाबले अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया थोड़ी पेचीदा होती है। साथ ही यह कई चरणों में होता है। आइए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया और मौजूदा चुनावी संग्राम को समझते हैं।
दस्तावेज दायर करना
कोई भी अमेरिकी जो राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल होना चाहता है उसको अपने दस्तावेज फेडरल इलेक्शन कमीशन के पास जमा कराने होते हैं। ऐसा चुनाव तारीख से एक साल पहले तक ही किया जा सकता है।
प्राइमरी चुनाव
ये अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का पहला चरण है। विभिन्न राज्यों में प्राइमरी चुनाव के जरिए पार्टियां अपने प्रबल दावेदार का पता लगाती हैं। इस प्रक्रिया के बारे में कोई लिखित निर्देश संविधान में मौजूद नहीं है। ऐसे में ये प्रक्रिया दो तरीके से होती है।
प्राइमरी
ये तरीका ज्यादा परंपरागत है। अधिकतर राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है। इसमें आम नागरिक हिस्सा लेते हैं। और पार्टी को बताते हैं कि उनकी पसंद का उम्मीदवार कौन सा है।
कॉकस
इस प्रक्रिया का इस्तेमाल उन राज्यों में होता है जहां पर पार्टी का गढ़ होता है। कॉकस में ज्यादातर पार्टी के पारंपरिक वोटर ही हिस्सा लेते हैं। इस बार लोवा राज्य में कॉकस तरीका अपाया जाएगा।
नेशनल कन्वेंशन
प्राइमरी में चुने गए प्रतिनिधि दूसरे दौर में पार्टी के सम्मेलन(कन्वेंशन) में हिस्सा लेते हैं। कन्वेंशन में ये प्रतिनिधि पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं। इसी दौर में नामांकन की प्रक्रिया होती है। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार अपनी पार्टी की ओर से उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनता है। रिपब्लिकन पार्टी का कन्वेंशन 18 से 21 जुलाई और डेमोक्रेटिक पार्टी का 25 जुलाई को आयोजित किया जाएगा।
चुनाव प्रचार
अगले चरण में चुनाव प्रचार शुरू किया जाता है। इसमें अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवार मतदाताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं। इसी दौरान उम्मीदवारों के बीच टेलीविजन पर कई मुद्दों को लेकर बहस होती है। आखिरी हफ्ते में उम्मीदवार अपनी पूरी ताकत लगा कर ‘स्विंग स्टेट्स’ को लुभाने में झोंक देते हैं। ये वह राज्य होते हैं जहां का मतदाता किसी के भी पक्ष में मतदान कर सकता है।
इलेक्टोरल कॉलेज
इलेक्टरोल कॉलेज ही राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करता है। लेकिन इससे पहले राज्यों के मतदाता इलेक्टर चुनते हैं, जो राष्ट्रपति पद के किसी न किसी उम्मीदवार का समर्थक होता है। ये इलेक्टर एक इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं। इसमें कुल 538 सदस्य होते हैं। इलेक्टर चुनने के बाद ही आम जनता की चुनाव में भागीदारी खत्म हो जाती है। अंत में इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य मतदान के जरिए राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत जरूरी होते हैं।
प्राइमरी तंत्र की खासियत
लंबी चुनाव प्रक्रिया में कमजोर उम्मीदवार बाहर हो जाते हैं। उम्मीदवारों से जुड़े स्कैंडल और विवाद भी जनता के सामने आ जाते हैं।
प्राइमरी तंत्र की खामी
यह बेहद लंबी और खर्चीली प्रक्रिया है। प्राइमरी चुनाव का रूझान बाकी वोटरों को प्रभावित करता है।
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